पांडवों के अज्ञात-वास के दौरान उन्हें अपनी पहचान छुपानी थी क्यों ?


चुकी जुए की बुरी लत के कारण तथा सकुनी मामाँ की चंचल बुद्धि के कारण पांडाओं को 12  साल का वनवास तथा 1 अज्ञात कुल का वास हुआ था. 

वैसे तो जुए में कई शर्ते थी परन्तु  शर्तों में एक शर्त एक वर्ष के अज्ञात वास की थी जिसमें पहचान लिए जाने पर शर्त के अनुसार फिर से वनवास करना पडता अर्थात वनवास फिर से प्रारम्भ हो जाता। 

◆यह शर्त सम्पूर्ण रूप से पांडवों की ओर से जुए में पांसे फेकने के समय ही मान ली गई थी ।
◆अतएव जुए में हार जाने के बाद शर्त का पालन करना अनिवार्यता थी—शर्त का धर्म ही समझिए इसे— कि पहचान छुपानी होगी।
◆अब इस के अनुपालन में जो भी कार्य अज्ञात रहने के लिए किया जाएगा वह धर्मसम्मत ही मान्य होना चाहिए, अन्यथा अज्ञातवास की शर्त का पालन कैसे होता ?
◆यदि वे अपना और भाइयों का असली नाम उजागर करके तथा बिना वेश बदले अज्ञातवास शुरू करते तो दुर्योधन के गुप्तचर पांडवों को आसानी से पहचान लेते।

 ऐसे में अज्ञात वास की शर्त शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाती ।अर्थात पहचान छुपाए बिना अज्ञातवास शुरू ही नहीं हो सकता था।
◆इसलिए अज्ञातवास की शर्त के पालन के लिए उन्होंने जो किया जैसे वेश बदलना व नाम बदलना इत्यादि, धर्माचरण ही कहा जाएगा।
◆यहाँ तक कि जब   अज्ञातवास के दौरान ने युधिष्ठिर उस जगह के राजा के पास पहुंचे तो राजा ने युधिष्ठिर को पाँसे फेंक कर मारे तब युधिष्ठिर को लगी ऐसी चोट का रक्त भूमि पर गिरने की स्थिति में अनर्थकारी  होगा इस भविष्यवाणी से बचने के लिए सैरंध्री-द्रोपदी ने कटोरा उनके मुख के पास लगा दिया। पर चोट खाने पर भी राजा के प्रश्न का सीधा उत्तर उन्होंने नहीं दिया, क्योंकि तब पहचान उजागर हो जाती। पहचान उजागर होने पर वे शर्त हार जाते ।और फिर शर्त के अनुसार ही दुबारा से वनवास का क्रम शुरू हो जाता।


●क्या करणीय है क्या अकरणीय है-क्या करने लायक है, क्या छोड़ने लायक है? 

धर्म अधर्म के बदलते परिदृश्य और मनुष्य की अन्तः चेतना के इस संघर्ष का काव्य लेखन ही तो महाभारत है।अब यों तो जुआ खेलना क्या धर्म था ? पर उन दिनों यदि कोई चुनौती दे तो स्वीकार करने की परम्परा हुआ करती थी।
●हारा हुआ पति क्या पत्नी को दाँव पर लगा सकता है ? धर्माचार्यों, नीतिविशेषज्ञों, वरिष्ठ अनुभवी विज्ञजनों से भरी सभा में पूँछा गया द्रौपदी का यह सनातन प्रश्न सदा से अनुत्तरित ही है।
●इसलिए महाभारत महाकाव्य ही नहीं इससे भी बढ़ कर यह मनुष्य के अस्तित्व का और उसके अंतर्मन में सदैव चलने वाला द्वंद्व का लेखा-जोखा भी है।
●दुर्योधन -"जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति…." वह धर्म अधर्म दोनों जानता है पर वह अधर्म से विमुख नहीं हो पाता और धर्म मे प्रवृत्त नहीं हो पाता।क्यों?

पादन्त टिप्पणी: अर्जुन ने प्रतिज्ञा की थी कि जो भी व्यक्ति युधिष्ठिर को युद्धभूमि के अलावा अन्यत्र घायल करेगा उसे वह जीवित नही छोड़ेगा।इसलिए रक्त को तुरन्त हटाया जा सके इस हेतु युधिष्ठिर ने पहले तो रक्त अपनी अंजुली में लिया फिर सैरंध्री से पात्र लाने को कहा।

चित्र :गूगल 

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