यदि हम विज्ञानं और भगवन में समानता निकाले तो यह बहुत ही जटिल होगा किन्तु कुछ किताबो के अनुसार !
दरअसल ब्रह्म, विष्णु और महेश इलेक्ट्रान, न्यूट्रॉन और प्रोटोन ही है।
ईश्वर के दो रूप है।
एक तो सगुण और एक निर्गुण। जो सगुण है वो विज्ञान में इलेक्ट्रान प्रोटोन और न्यूट्रॉन ही है। वही ईश्वर है। और जो निर्गुण है वो इन सब से परे है।
इस बात का पता आपको गीता के 11 वे अध्याय के 28 वे श्लोक से पता चलता है जिसके बारे में परमाणु बनाने वाले वैज्ञानिक ने परमाणु बनाते समय इसकी चर्चा की थी।
जब वैज्ञानिक उस परमाणु को बना रहा था तो उनके पास एक श्लोक था और उसमे लिखा था।
हे अर्जुन। में वर्तमान में इन प्रतिपक्षियों की सेना का नाश करने के लिए उतपन्न हुआ हूं। में इनका विनाश करने के लिए ही आया हु। अतः तू युद्ध कर। वे मेरे द्वारा पहले ही मार दिए गए है।
जब इस श्लोक का आप वर्णन देखेंगे तो देखेंगे कि परमाणु बनाने वाले वैज्ञानिक ने इसका अर्थ उस बम से ही लिया है। उस बम को बनाने की प्रक्रिया में भगवान ही है। अब सवाल आता है कि कैसे?
क्योंकि परमाणु बम बनाने में slow moving particle की जरूरत होती है और उसमे न्यूट्रॉन का उपयोग किया जाता है। और उसी न्यूट्रॉन की वजह से वह परमाणु बम भयानक होता है। इतना भयानक की जब वह बम गिराया जाता है तो करोड़ो सूर्य जैसा प्रकाश और ऊर्जा होती है। और इसी वैज्ञानिक मत को गीता में श्री कृष्ण ने अपना विराट रूप अर्जुन को दिखाते हुए कहा है कि-
हे अर्जुन। मेरा ये तेज़ करोड़ो सूर्य के मिलने पर भी ज्यादा है।
अर्थात वही बात है। अब परमाणु बम में भगवान का निवास कैसे हो गया?
तो आपने सुना ही होगा कि ब्रह्म अस्त्र, विष्णु अस्त्र आदि के बारे में। ये उस समय के अणु, परमाणु बम ही तो थे। ब्रह्म जी इलेक्ट्रान है।
और जब कोई बम इलेक्ट्रान से चलायमान होता तो उसे ब्रह्म अस्त्र कहते थे। आज जो हम परमाणु बम जानते है वह नारायण अस्त्र है।
चित्र स्त्रोत- गूगल
अब आपके प्रश्न पर आते है।
धर्म, अध्यात्म, और विज्ञान एक ही है। लेकिन जो निर्गुण ईश्वर है वो इन तीनो से परे है।
गीता में कहा है-
हे अर्जुन। न तो मे वेद द्वारा जाना जाता हूं, न तप द्वारा, न दान द्वारा, न ही विज्ञान द्वारा।
में इन सब से परे हूँ।
अब आगे के श्लोक में कहते है-
इस संसार मे सारे प्राणी तीन गुणों के वशीभूत होकर कर्म करते है। तीन गुणों के वशीभूत होकर भौजन करते है। तीन गुणों के वशीभूत होकर अपनी वृति के अनुसार कार्य करते है।
और ये तीन गुण है रज, तमो और सत्व गुण।
इन्ही गुणों से प्रकृति की माया है।
प्रस्तुत श्लोक बड़ा सरल प्रतीत होता है परन्तु यहा भगवान ने विज्ञान की बात कर दी।
यहां ये तीन गुण विज्ञान के इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन से सम्बन्ध रखते है।
इन्ही तीनो के द्वारा पदार्थ का अस्तित्व है। सृष्टि इन्ही से चल रही है। और जब मनुष्य इन तीनो गुणों से परे हो जाएगा अर्थात इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन से तो वह परमात्मा हो जाएगा।
जैसे कि आत्मा है। वह दीवार के आर पार चली जाती है। परन्तु शरीर नही जा पाता। क्योंकि आत्मा मे इलेक्ट्रान प्रोटोन और न्यूट्रॉन नही है। वह तीनो गुणों से परे हो गयी। इसलिए अब उसमे विधुत क्षेत्र नही है जो उसे दीवार के उस तरफ जाने से रोक सके। जबकि शरीर मे इलेक्ट्रान प्रोटोन और न्यूट्रॉन है जो दीवार से टकरा कर वही रहेगा। आर पार नही जा सकता।
ऐसे ही ईश्वर का एक भाग जो सगुण है वह विज्ञान ही है। और जो निर्गुण है वह विज्ञान से परे है।
पर अब प्रश्न आता है कि फिर ये लक्ष्मी और दुर्गा और काली माता कहा से आयी??
गीताशास्त्र त्रिगुणात्मक जगत और गुणों का व्यक्त अस्तित्व कहता है । दूसरे शब्दों में एक उत्पन्नकर्ता, दूसरा पालनकर्ता और तीसरा संहारकर्ता है । कोई भी सांसारिक तत्व इन तीनों गुणों/शक्तियों से ही आवृत होता है । क्रम से प्रथम ब्रह्मा, द्वितीय विष्णु और तृतीय को शिव कहा जाता है । विज्ञान में इसके समरूप क्रम से इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन है । हमारा जो कल तक वेद था वह आज का विज्ञान है । बस उसकी भाषा बदल गई है । वेद समस्त समस्या-समाधान को एकसाथ व्यक्त करता है अर्थात संश्लेषणात्मक रूप से व्यक्त करता है जबकि विज्ञान उसका विश्लेषण कर अलग-अलग रूपों में व्यक्त करता है ।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप में व्यक्त तत्व दो श्रेणियों में व्यक्त किये गये ... एक सगुण तो दूसरा निर्गुण । सगुण को अवतारी (संसारी) कहा गया जबकि निर्गुण को मुक्त कहा गया । ईश्वर का वह रूप जो सगुण है वह इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन रूप में व्यक्त है । ब्रह्मा निर्माण करते हैं तात्पर्य इलेक्ट्रॉन निर्माण का आधार है । किसी भी पदार्थ के बनने में इलेक्ट्रॉन मुख्य भूमिका निभाता है । विष्णु पालनकर्ता है तात्पर्य न्यूट्रॉन के कारण पदार्थो के स्वरूप व उपयोग का निर्धारण होता है । जबकि शिव संहारकर्ता है तात्पर्य प्रोटॉन के कारण परमाणु का विघटन या विनाश हो सकता है । इनके समस्त के साथ एंटीपार्टिकल भी होते हैं जिसे क्रम से महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली कहते हैं । तीन स्तर अर्थात देश, काल और पात्र में काली काल का कारण, लक्ष्मी देश का कारण और सरस्वती पात्र का कारण है । सरस्वती शब्द, स्पर्श, रूप आदि पंच विषयों को समेटे है । लक्ष्मी में स्पर्श छोड़कर बाकी चार है और काली में रूप भी छोड़कर बाकी तीन है । विष्णुभक्तों को जिस प्रकार सर्वश्रेष्ठ न्यूट्रॉन ही जगत का आधार तत्व प्रतीत होता है उसी प्रकार शैवभक्तों को सबका आधार तत्व प्रोटॉन प्रतीत होता है । ब्रह्मा की पूजा पहले खूब होती थी तात्पर्य विज्ञान जगत इलेक्ट्रॉन को समस्त विकास का आधार कहता है और जिस दिन से प्रोटॉन पर विशेष शोध होकर प्रोटॉन युग आयेगा तब इलेक्ट्रॉन आधारित विकास का युग ओझल हो जायेगा । यह कूटबद्ध किया गया । न्यूट्रॉन आधारित विज्ञान का विकास सबसे अंत के चरणों में होगा । मनुष्य जाति इन तीनों के विकास को या तो आध्यात्मिक रीति से पूरा करे या विज्ञान के रीति से ... अकेले में अधूरा मात्र है । दोनों को एकसाथ वेद की तरह संश्लेषित कर दे तो वेद ही श्रेष्ठ होगा । वेद में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का सारतत्व क्रम से ऋग्वेद, यजुर्वेद; सामवेद और अथर्ववेद है । ब्रह्ममुख से सर्वप्रथम ऋग्वेद निकला और तत्पश्चात यजुर्वेद फिर सामवेद और अंत में अथर्ववेद का संकलन हुआ ।
न्यूट्रॉन विष्णु की भांति हैं जो कण-कण में अनिवार्य रूप से केंद्र में बैठा क्षीरसागर में शयन कर रहा है वह नीले रंग का है । जब भी प्रोटॉन अर्थात शिव पर कोई विपदा आती है तब न्यूट्रॉन के हस्तक्षेप से बचाव होता है । संसार की रक्षा जितना न्यूट्रॉन कर सकता है उतना दोनों नहीं । जब महिषासुर( कलियुग के आखरी चरण की समस्याओं) ने आतंक मचा रखा था तब एंटीपार्टिकल के महाकाली रूप से रक्षा हुई थी ।
इन तीनो ब्रह्म, विष्णु और महेश को ही निकोल टेस्ला ने 3, 6, 9 कहा है। और यही प्रकृति के गुण है। इन अंको के द्वारा ब्राह्मंड के समस्त राज समझे जा सकते है। परन्तु आज के वैज्ञानिक 3, 6 और 9 कि कड़ी को सुलझा ही नही पा रहे। इसका एक मुख्य कारण है जो अगले जवाब में दूंगा।
आशा है मेरी बात समझ आयी होगी।
कुछ लोग मेरी बात का प्रमाण मांगेंगे-
वैज्ञानिक लोगो के लिए प्रमाण स्वरूप मे वैज्ञानिक Julius Robert Oppenheimer की पुस्तक बताना चाहूंगा जिसमे उन्होंने बम बनाते समय लिखी थी। और गीता की के बारे में भी बताया था।
इसीलिए में बार बार कहता हूं। गीता एक ऐसी पुस्तक है जहाँ आप जिस प्रकार से दृष्टि डालोगे वैसा ही अर्थ मिलेगा।
मेने मन के स्तर पर दृष्टि डाली तो सारा अर्थ मन के स्तर पर मिला। मेने वैज्ञानिक दृष्टि डाली तो हर श्लोक में विज्ञान मिला। इसीलिए कहते है- यथा दृष्टि, तथा सृष्टि।
आध्यात्मिक लोगो के लिए मे गीता का 11वा अध्याय बताना चाहूंगा। वो पढे।
यदि आप फिर भी असहमत है तो ये आपका अधिकार है।
धन्यवाद।
नॉट- यदि आप विज्ञान की को लेकर यह कहते है कि भगवान नही है तो इसका अर्थ है आपने विज्ञान को फिर समझा ही नही।
वैज्ञानिक रिचार्ड ने कहा था कि विज्ञान की पहली परत आपको नास्तिक बना देगी परन्तु उस पहली परत को पार करने के बाद आप स्वयं उस सत्य को खोजने निकल जाओगे।
इसलिए आपसे यही कहना है कि झूठ को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान का सहारा मत लीजिये।
निकोल टेस्ला ने कहा है-
जिसे ईश्वर विज्ञान कहता है वह एक भगवान ही है।
इसलिए विज्ञान के अंत तक जाइये। धन्यवाद।
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