द्रोपदी की सुहागरात का सच.
महाभारत का समय आज से लगभग 5000 वर्ष पहले का माना जाता है और उस काल में विवाह के
तीन मुख्य तरीके होते थे-
1. हरण विवाह,
2. स्वयंवर
3. पिता या परिवार द्वारा वर का चयन
पिता या परिवार द्वारा वर का चयन जिसे आजकल अरेंज मैरिज भी कहते है।
यदि हम हरण विवाह के बारे में बात करे तो यह विवाह तब होता था जब लड़का लड़की एक दूसरे से प्रेम करते हों और विवाह करना चाहते हों किन्तु लड़की के परिवार वाले अनुमति न दें तो लड़का अपने शौर्य का प्रदर्शन कर लड़की का हरण कर लेता था। अर्थात लड़की को अपने साथ अपने बल पर उठा ले जाता था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उपरोक्त तीनों प्रकार के विवाह में सबसे उत्तम विवाह हरण विवाह को ही माना जाता था।
इसका कारण यह है कि लड़का लड़की का आपसी प्रेम व लड़के द्वारा वीरतापूर्वक हरण कर यह सिद्ध कर देना कि उससे उपयुक्त वर और कोई नहीं है। हरण विवाह में लड़की स्वयं लड़के के साथ जाती थी जबकि लड़की के परिवार वाले विरोध करते थे व लड़के के साथ युद्ध भी करते थे।
उदाहरण के रूप में
1 श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मणि का हरण व विवाह करना ,
2 अर्जुन द्वारा सुभद्रा का हरण व विवाह
आदि।
श्री कृष्ण तो स्वयं चाहते थे कि अर्जुन सुभद्रा का हरण कर विवाह करे इसीलिए अर्जुन को रोकने जब बलराम, सात्यकि आदि यदुवंशी योद्धा चले तो श्रीकृष्ण ने उन्हें रोका व समझाया कि आखिर अर्जुन में क्या कमी है। और सत्य भी था, उक्त समय में अर्जुन समान कोई धनुर्धर इस धरा पर न था।
अब हम बात करते की कैसे द्रोपदी ने पाँचो पांडवों के साथ सुहागरात मनाई। सच तो यह है कि द्रोपदी ने केवल युधिष्ठिर के साथ ही सुहागरात मनाई थी, क्योंकि द्रोपदी केवल और केवल युधिष्ठिर की ही पत्नी थी। हालांकि द्रोपदी को स्वयंवर में जीता अर्जुन ने था किंतु पांडवों की माता कुंती को यह चिंता थी कि यदि बड़े भाई से पहले छोटे भाई का विवाह हो जाएगा तो बड़े भाई का विवाह होने में अनेक समस्याएं आ सकती है जैसे कि क्या बड़े भाई में कोई नालायकता है जो सन्यास लिए बिना भी छोटे भाई से पहले शादी नहीं हो पाई। आज भी समाज में ऐसा होता है कि बड़े भाई या बहन का विवाह तय होने से पहले छोटे का रिश्ता तय नहीं किया जाता। इसलिए कुंती की आज्ञा थी कि द्रोपदी को चाहे स्वयंवर में जीता अर्जुन ने हो किन्तु धर्मपत्नी युधिष्ठिर की ही होगी। सबसे बड़ी बात जिस युग में श्रीकृष्ण जैसे धर्म संस्थापक महापुरुष हो भला ऐसा अन्याय कैसे हो सकता था।
महाभारत के विशुध्द संस्करण में कहीं पर भी यह उल्लेख नहीं मिलता की द्रोपदी के पांच पति थे। बस यह सच है की वह अर्जुन के प्रति लगाव रखती थी चुकी अर्जुन उन्हें स्वयंबर से जीत कर लाये थे. और कुन्ती का कथन भी था अतः हम केवल उसी महाभारत के बारे में जानते हैं जो या तो टीवी पर दिखाई जाती है या फिर महर्षि वेदव्यास के बाद मनघड़ंत रूप से रची गई। वेदव्यास रचित महाभारत में केवल 10000 श्लोक हैं जबकि बाद कि महाभारत में समय समय पर परिशिष्ट जोड़ कर श्लोकों की संख्या 100000 तक पहुंचा दी गई। अतः विश्वास उसी महाभारत पर किया जा सकता है जो समकालीन व्यक्ति ने लिखी और समकालीन महर्षि वेदव्यास ही थे। यह हमारे समाज की बहुत बड़ी समस्या है कि हम बिना तर्क वितर्क के किसी भी बात को स्वीकार कर लेते हैं जो कि हिन्दू समाज के सिकुड़ने का बहुत बड़ा कारण है।
अतः आपसे अनुरोध है की बिना प्रमाण के अंत पर पहुंच जाना उचित नहीं है. अतः यदि संभव हो तो एक बार वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत को जरूर पढ़े.
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